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लेखनी कहानी -03-Oct-2022 भोर की किरण

भोर की किरण लघुकथा

रात अंधेरी और घर में केवल दो छोटे बच्चे । जैसे वो वक्त गुजर ही नहीं रहा था और भोर होने का इंतजार इसके अलावा कोई रास्ता भी तो शेष नहीं कल्पना बस सुबह होने का इंतजार कर रही थी जैसे ही सुबह हो वो बच्चों के साथ रवाना हो जाएगी।
अचानक से अकेले घर से निकलना मुश्किल था लेकिन अपने परिवार की खुशियों की खातिर जैसे उसमें हिम्मत आ चुकी थी । और उसने बस कुछ जरूरी सामान पैक किया और अपने पति को फोन करके बताया मैं आ रही हूं आप बिल्कुल भी परेशान मत होना । जो कि इस वक्त अपने पिता को हास्पिटल में भर्ती करवाया था और उस अनजाने शहर में खुद को अकेला महसूस कर रहे थे। कल्पना के ससूर जी की हालत खराब थी उम्र भी ज्यादा ऐसे में आपरेशन तो हुआ ही था कोरोना की रिपोर्ट भी पाज़िटिव आ गयी थी। कल्पना भी डर रही थी लेकिन जैसे ही सुबह हुई वो बस चल दी अपने सफ़र पर बच्चों को लेकर 300किमी का सफर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई।अगली सुबह कल्पना और उसका पति मंदिर में जाकर दर्शन किया और कल्पना की श्रद्धा और विश्वास ही था जो वो दोनो मंदिर से निकल ही रहे थे कि रिपोर्ट आ गई । आपके पिता जी की रिपोर्ट निगेटिव आयी है आप ले जा सकते हैं। मानों उनके जीवन में भोर में सुबह की किरणों के संग ही प्रकाश हो गया और सब हर्षित ईश्वर का आभार व्यक्त करने लगे।

   स्वरचित एवं मौलिक रचना

       अनुराधा प्रियदर्शिनी
       प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Oct-2022 05:29 PM

बहुत खूबसूरत

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Bahut khoob 💐🙏

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Kaushalya Rani

05-Oct-2022 09:38 PM

Beautiful

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